Edited by: Altamash Khan
पिछले दो महीनों में भारतीय शेयर बाजार में जबरदस्त गिरावट देखी गई है, जिससे निवेशकों के बीच घबराहट बढ़ गई है। निफ्टी 50 और सेंसेक्स दोनों में भारी गिरावट दर्ज की गई, जिससे देश के वित्तीय बाजारों में अस्थिरता का माहौल बन गया। सेंसेक्स फरवरी में 6% से अधिक गिर चुका है, और कई बार 1000 अंकों से अधिक की गिरावट देखने को मिली है। निफ्टी 50 भी अपने महत्वपूर्ण स्तरों से नीचे चला गया है, जिससे निवेशकों का मनोबल कमजोर हुआ है। यह गिरावट केवल कुछ विशेष क्षेत्रों तक सीमित नहीं रही, बल्कि बैंकिंग, आईटी, रियल एस्टेट, और मिड-कैप स्टॉक्स सहित लगभग सभी सेक्टर्स को नुकसान हुआ है।
इस गिरावट के पीछे कई वैश्विक और घरेलू कारण जिम्मेदार हैं। वैश्विक स्तर पर, अमेरिका के फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि और आक्रामक मौद्रिक नीति के कारण विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) भारतीय बाजार से पूंजी निकाल रहे हैं। अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी के कारण अमेरिकी संपत्तियां निवेश के लिए अधिक आकर्षक बन गई हैं, जिससे उभरते बाजारों जैसे भारत से विदेशी पूंजी बाहर जा रही है। इसके अलावा, वैश्विक स्तर पर बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और आर्थिक मंदी की आशंका ने भी बाजार की अस्थिरता को बढ़ाया है।
घरेलू मोर्चे पर भी कई आर्थिक कारक बाजार की कमजोरी के लिए जिम्मेदार हैं। भारत में मुद्रास्फीति (Inflation) अभी भी एक चिंता का विषय बनी हुई है, और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) इसे नियंत्रित करने के लिए सख्त नीतियां अपना रहा है। ब्याज दरों में वृद्धि से कर्ज महंगा हो जाता है, जिससे कंपनियों की वित्तीय लागत बढ़ जाती है और उनका मुनाफा प्रभावित होता है। इसके अलावा, उपभोक्ता मांग में सुस्ती और आपूर्ति श्रृंखला से जुड़ी समस्याओं के कारण कई कंपनियों के तिमाही नतीजे उम्मीद से कमजोर आए हैं, जिससे निवेशकों की निराशा बढ़ी है।
शेयर बाजार अर्थव्यवस्था की धुरी होता है और इसका सीधा असर व्यापार, निवेश, रोजगार और वित्तीय स्थिरता पर पड़ता है। यदि बाजार लंबे समय तक गिरावट में बना रहता है, तो इसका असर नई कंपनियों की फंडिंग, निवेशकों की संपत्ति, और देश की समग्र आर्थिक वृद्धि पर पड़ता है। ऐसे में सरकार को आवश्यक नीतिगत हस्तक्षेप करने की जरूरत है, ताकि बाजार में स्थिरता लाई जा सके और सकारात्मक माहौल बनाया जा सके।
सरकार और आरबीआई को सबसे पहले मौद्रिक नीति को लेकर संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखना जरूरी है, लेकिन इसके साथ ही बाजार में तरलता (Liquidity) बनाए रखना भी आवश्यक है। ब्याज दरों को लेकर आरबीआई को थोड़ी नरमी बरतनी चाहिए या कम से कम उन्हें स्थिर रखना चाहिए, ताकि कंपनियों को कर्ज लेने और निवेश बढ़ाने में आसानी हो। यदि कंपनियां विस्तार करेंगी और निवेश बढ़ेगा, तो यह शेयर बाजार में भी सकारात्मक असर डालेगा।
इसके अलावा, सरकार को वित्तीय प्रोत्साहन (Fiscal Stimulus) देने पर भी विचार करना चाहिए। बुनियादी ढांचे, रियल एस्टेट, और निर्माण क्षेत्र में अधिक सरकारी निवेश से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और आर्थिक गतिविधियों को गति मिलेगी। यदि सरकार सार्वजनिक खर्च बढ़ाती है और नई परियोजनाओं की शुरुआत करती है, तो इससे व्यापारिक धारणा में सुधार होगा और निवेशक शेयर बाजार में फिर से भरोसा करने लगेंगे। साथ ही, कर राहत (Tax Relief) और निवेशकों के लिए आकर्षक योजनाएं पेश करके बाजार में नई ऊर्जा लाई जा सकती है।
सरकार को विदेशी निवेशकों को फिर से आकर्षित करने के लिए ठोस नीतियां बनानी होंगी। हाल के महीनों में भारत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FII) की बिकवाली अधिक रही है, जिससे बाजार में गिरावट आई है। यदि सरकार दीर्घकालिक विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए कर लाभ, स्थिर नीतियां, और सरल विनियामक प्रक्रियाएं लागू करती है, तो इससे विदेशी पूंजी प्रवाह को बनाए रखा जा सकता है। भारत एक उच्च-विकास वाली अर्थव्यवस्था है, और यदि सरकार इसे वैश्विक निवेशकों के लिए एक मजबूत विकल्प के रूप में प्रस्तुत करती है, तो शेयर बाजार में स्थिरता आ सकती है।
इसके अलावा, छोटे और मध्यम उद्योगों (MSME) और विनिर्माण क्षेत्र के लिए विशेष योजनाएं लागू करने की आवश्यकता है। ये क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था और रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यदि सरकार उन्हें सस्ते ऋण, कर में छूट, और अन्य प्रोत्साहन प्रदान करती है, तो इससे इन उद्योगों की स्थिरता बनी रहेगी। मजबूत एमएसएमई सेक्टर का मतलब होगा बेहतर उपभोक्ता मांग, अधिक उत्पादन और उच्च जीडीपी वृद्धि, जो अंततः शेयर बाजार के लिए भी फायदेमंद साबित होगा।
भारतीय शेयर बाजार की अस्थिरता को कम करने के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) को भी ठोस कदम उठाने होंगे। बाजार में अनावश्यक उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने के लिए SEBI को प्रभावी निगरानी बढ़ानी होगी और अल्पकालिक सट्टेबाजों के प्रभाव को सीमित करने के लिए नीतियां लागू करनी होंगी। इसके अलावा, घरेलू संस्थागत निवेशकों जैसे म्यूचुअल फंड्स, बीमा कंपनियों और पेंशन फंड्स को बाजार में अधिक भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, जिससे शेयर बाजार विदेशी पूंजी पर कम निर्भर रहेगा।
निवेशकों का विश्वास बनाए रखना भी सरकार और वित्तीय नियामकों की प्राथमिकता होनी चाहिए। बाजार में भय और घबराहट को कम करने के लिए सरकार को प्रभावी संचार रणनीति अपनानी होगी, जिससे निवेशकों को यह विश्वास हो कि भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से बाजार में सुधार होगा। वित्तीय जागरूकता अभियान चलाकर आम निवेशकों को दीर्घकालिक निवेश की ओर प्रेरित किया जा सकता है, जिससे बाजार में स्थिरता आएगी।
इसके अलावा, खुदरा निवेशकों (Retail Investors) की भागीदारी को बढ़ावा देना आवश्यक है। जब विदेशी निवेशक बाजार से बाहर निकलते हैं, तो घरेलू निवेशकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यदि खुदरा निवेशकों को बाजार में अधिक भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया जाए, तो इससे बाजार में तरलता बनी रहेगी और अनावश्यक उतार-चढ़ाव कम होंगे। एसआईपी (SIP) योजनाओं को बढ़ावा देकर, इक्विटी निवेश पर कर लाभ प्रदान करके, और वित्तीय शिक्षा में सुधार करके खुदरा निवेशकों को बाजार में सक्रिय बनाए रखा जा सकता है।
दीर्घकालिक रूप से, सरकार को पूंजी बाजार को मजबूत बनाने पर ध्यान देना चाहिए। कंपनियों के लिए सूचीबद्ध होने की प्रक्रिया को सरल बनाना, निवेशकों के लिए एक पारदर्शी और निवेशक-अनुकूल वातावरण तैयार करना, और पूंजी बाजार के बुनियादी ढांचे में सुधार करना आवश्यक है। जब पूंजी बाजार मजबूत होगा, तो यह न केवल भारतीय कंपनियों के लिए फायदेमंद होगा, बल्कि इससे वैश्विक निवेशकों का भी भरोसा बढ़ेगा।
निफ्टी 50 और सेंसेक्स की हालिया गिरावट ने यह दिखाया है कि बाजार को स्थिर बनाए रखने के लिए सरकार और आरबीआई की सक्रिय भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है। हालांकि बाजार के उतार-चढ़ाव स्वाभाविक हैं, लेकिन प्रभावी नीतियों के माध्यम से इन झटकों को सीमित किया जा सकता है। यदि सरकार वित्तीय प्रोत्साहन, मौद्रिक नीतियों में लचीलापन, और विदेशी निवेश के लिए अनुकूल माहौल तैयार करने में सफल होती है, तो बाजार में स्थिरता लौटेगी।
आने वाले महीनों में सरकार की ओर से लिए गए फैसले यह तय करेंगे कि भारतीय शेयर बाजार कितनी जल्दी इस गिरावट से उबरता है। यदि सही कदम उठाए जाते हैं, तो बाजार न केवल अपनी खोई हुई जमीन वापस हासिल करेगा, बल्कि निवेशकों के लिए एक सुरक्षित और आकर्षक निवेश स्थान भी बन जाएगा।
लेखक के बारे में:
अल्तमश खान एक योगदानकर्ता पत्रकार हैं जिन्होंने प्रतिष्ठित अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। उनके पास राजनीति और सामाजिक मुद्दों से लेकर प्रौद्योगिकी और ब्रांड तक कई विषयों पर लिखने का आधे दशक से अधिक का अनुभव है। अपने पत्रकारिता कार्य के अलावा, वह एक जनसंपर्क और ब्रांड रणनीतिकार के रूप में काम करते हैं, जिससे दुनिया भर में ब्रांड संदेशों को संप्रेषित करने में मदद मिलती है। वह इस मुद्दे पर आपके विचार सुनना पसंद करेंगे। नीचे एक टिप्पणी छोड़ें या सोशल मीडिया हैंडल के माध्यम से संपर्क करें।