बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई के लिए ठोस एवं समन्वित रणनीति जरूरी

TAASIR :– S M HASSAN –13 OCT

बाल विवाह रोकने के लिए बचपन बचाओ आंदोलन की पहल पर हुए सम्मेलन में सभी ने एक सुर से की मांग

पटना : बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) ने चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, पटना के साथ मिल कर 2030 तक देश से बाल विवाह के पूरी तरह खात्मे के लक्ष्य को हासिल करने के उपायों पर चर्चा के लिए सम्मेलन का आयोजन किया। बिहार में बच्चों की सुरक्षा और कल्याण के लिए काम कर रहे 31 जिलों के तकरीबन तीन दर्जन गैर सरकारी संगठन भी इसमें शामिल हुए। सम्मेलन में सभी हितधारकों ने बाल विवाह मुक्त भारत के लक्ष्य को हासिल करने की कड़ी में बिहार को बाल विवाह से मुक्त करने के उपायों का खाका तैयार करने पर गहन विचार विमर्श किया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि महिला एवं बाल कल्याण निगम, बिहार के निदेशक राजीव वर्मा, विशिष्ट अतिथि एवं बिहार राज्य विधिक सेवाएं प्राधिकरण (बीएसएलएसए) की संयुक्त सचिव धृति जसलीन शर्मा, सशस्त्र सीमा बल के उप महानिरीक्षक (डीआईजी) के. रंजीत और बीएससीपीसीआर की पूर्व अध्यक्ष निशा झा सहित अन्य लोग मौजूद थे।
2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में 51,57,863 लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की होने से पहले हो गया गया था। बिहार में कुल 12.9 लाख बच्चों के बाल विवाह हुए। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 (2019-2021) के अनुसार देश में 20 से 24 साल की 23.3 प्रतिशत लड़कियों का विवाह उनके 18 वर्ष का होने से पूर्व ही हो गया था जबकि बिहार में यह आंकड़ा राष्ट्रीय औसत से बहुत ज्यादा है जहां 40.8 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पूर्व हो गई थी। हालांकि बिहार सरकार कई लक्षित कदमों और योजनाओं के जरिए पूरी गंभीरता से बाल विवाह की रोकथाम के प्रयास कर रही है। सरकार ने जुलाई 2022 में एक अधिसूचना भी जारी की जिसके अनुसार किसी भी गांव से बाल विवाह की सूचना मिलने पर गांव के मुखिया को इस गैरकानूनी कृत्य के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा। इन उपायों से बाल विवाह की रोकथाम में कुछ हद तक मदद मिली है।
‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के कार्यकारी निदेशक धनंजय टिंगल ने सम्मेलन के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहा, “पिछले साल पूरे देश में एक अप्रत्याशित और आश्चर्यचकित कर देने वाली प्रतिक्रिया देखने को मिली। देश भर के 7028 गांवों से 76,000 महिलाएं और बच्चे मशाल लेकर एक साथ सड़कों पर उतरे और बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाई। बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई और इसके पूरी तरह से खात्मे के लिए हमें एक बहुस्तरीय और बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है। देश के 20 राज्यों में आयोजित होने वाले ये सम्मेलन 2030 तक बाल विवाह मुक्त भारत के सपने को पूरा करने की दिशा में एक और कदम हैं। इन सम्मेलनों के जरिए हम सभी हितधारकों को साथ लाना चाहते हैं कि ताकि इस अपराध के खिलाफ हम सभी साझा लड़ाई लड़ सकें। इस सामाजिक बुराई के खिलाफ लड़ाई में हम कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे और इसमें शामिल लोगों ने जिस तरह की प्रतिबद्धता दिखाई है, उससे हमारे संकल्प और हौसले को और बल मिला है।”
इस अवसर पर मुख्य अतिथि महिला एवं बाल कल्याण निगम, बिहार के निदेशक राजीव वर्मा ने राज्य को बाल विवाह मुक्त बनाने के लिए बहुआयामी प्रयासों पर जोर देने की वकालत करते हुए कहा, “कानूनों पर प्रभावी तरीके से अमल के साथ लोगों में इन कानूनों के बारे में जागरूकता का प्रसार, बच्चियों की आर्थिक सुरक्षा, उनकी शिक्षा और कौशल विकास जैसी चीजों को समाहित करते हुए एक समन्वित रणनीति अपनाने की आवश्यकता है ताकि इस बुराई के खात्मे के लिए सभी विभाग तालमेल के साथ एकजुट होकर काम करें। यद्यपि कानून प्रवर्तन एजेंसियां इसके खात्मे के लिए प्रयास कर रही हैं लेकिन नागरिक समाज अभी भी बाल विवाह के मामलों की सूचना देने आगे नहीं आ रहा है। हमें लोगों को भी जागरूक करने की आवश्यकता है।”
बाल विवाह के खात्मे के लिए मौजूदा कानूनों को लागू करने में आ रही चुनौतियों का जिक्र करते हुए विशिष्ट अतिथि एवं बिहार राज्य विधिक सेवाएं प्राधिकरण (बीएसएलएसए) की संयुक्त सचिव धृति जसलीन शर्मा ने कहा, “बाल विवाह के खिलाफ मौजूदा कानून काफी सख्त और इसे रोकने में सक्षम है लेकिन समस्या इनके अमल की है। बाल विवाह की बुराई में शामिल लोग अपने बीच के ही हैं। इसलिए जमीनी स्तर पर जागरूकता अभियान चला कर लोगों को बाल विवाह के बच्चों पर होने वाले शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है।”
सशस्त्र सीमा बल के डीआईजी के. रंजीत ने बाल विवाह एवं बाल दुर्व्यापार (चाइल्ड ट्रैफिकिंग) के कारणों पर प्रकाश डालते हुए कहा, “गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी बाल विवाह के पीछे मुख्य कारण हैं। जाति-पाति में बंटा रूढ़िवादी समाज और कम विकास की समस्या के अलावा एक अन्य कारण जो कम महत्वपूर्ण नहीं है, वह है बड़े शहरों के साथ रेल संपर्क से जुड़ा होना। अगर हम बाल विवाह से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों के ग्रामीण इलाकों में कौशल विकास पर ध्यान दें तो गरीबी और बेरोजगारी की समस्या का निदान किया जा सकता है और नतीजे में यह बाल विवाह और बाल दुर्व्यापार जैसी बहुत सी सामाजिक समस्याओं के समाधान में सहायक हो सकता है।