झारखंड विधानसभा में नियुक्ति गड़बड़ी मामले में हाई कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा

रांची, 20 जून 

झारखंड विधानसभा नियुक्ति गड़बड़ी मामले में दायर जनहित याचिका की सुनवाई गुरुवार को झारखंड हाई कोर्ट में हुई। दोनों पक्षों की सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट ने दोनों पक्षों को शनिवार तक लिखित बहस प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए महाधिवक्ता राजीव रंजन में कोर्ट को बताया कि जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की रिपोर्ट कानूनी रूप से रिपोर्ट नहीं मानी जाएगी। रिपोर्ट को सरकार के समक्ष पेश किया जाना चाहिए था लेकिन इसे सीधे राज्यपाल को दे दिया गया। राज्यपाल ने जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की रिपोर्ट सरकार को नहीं दी, जिससे विधानसभा के सदन के पटल पर एक्शन रिपोर्ट के बाद छह माह के भीतर इसे नहीं रखा जा सका।

जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की रिपोर्ट में कई त्रुटियां भी थी एवं उस कमीशन की कई अनुशंसा भी अस्पष्ट थी।इन त्रुटियों को देखने के लिए जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की एक कमीशन बनानी पड़ी। जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की रिपोर्ट को राज्य सरकार ने स्वीकार कर लिया है और उसे विधानसभा के सदन पटल पर रखा जा चुका है। जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की रिपोर्ट की फाइनल रिपोर्ट है।

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता राजीव कुमार ने कोर्ट को बताया कि झारखंड विधानसभा के वर्तमान स्पीकर विधानसभा कमेटी के सदस्य थे, इस कमेटी ने विधानसभा नियुक्ति गड़बड़ी मामले की जांच का रिपोर्ट दिया था की कार्रवाई होनी चाहिए। उनकी ओर से कोर्ट को बताया गया कि जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्हें केवल जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की रिपोर्ट ही दी गई थी, रिपोर्ट के साथ कोई दस्तावेज (एनेक्सचर) नहीं दी गई थी।

पूर्व में ही सरकार की ओर से एसजे मुखोपाध्याय आयोग की रिपोर्ट शपथ पत्र के माध्यम से कोर्ट में प्रस्तुत की जा चुकी थी। झारखंड विधानसभा में नियुक्ति गड़बड़ी मामले में शिव शंकर शर्मा ने जनहित याचिका दाखिल की है। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार और झारखंड विधानसभा से पूछा था कि जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की रिपोर्ट में क्या त्रुटियां थी जिसके कारण दूसरी आयोग बनानी पड़ी थी।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता की ओर से पूर्व की सुनवाई में कोर्ट को बताया गया था कि मामले की जांच को लेकर पहले जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की अध्यक्षता वाली वन मैन कमिशन बनी थी, जिसने मामले की जांच कर राज्यपाल को वर्ष 2018 में रिपोर्ट सौंपी थी, जिसके आधार पर राज्यपाल ने विधानसभा अध्यक्ष को एक्शन लेने का निर्देश दिया था। वर्ष 2021 के बाद से अब तक कोई एक्शन नहीं लिया गया है। राज्यपाल के दिशा-निर्देश के बावजूद विधानसभा अध्यक्ष इस मामले को लंबा खींच रहे हैं।