झारखंड हाई कोर्ट ने कहा, संवैधानिक संस्थानों में रिक्त पदों के मामले में कछुए की चाल से क्यों चल रही राज्य सरकार?

रांची, 1 जुलाई 

झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य में लोकायुक्त, सूचना आयुक्त, मानवाधिकार आयोग सहित अन्य संवैधानिक संस्थानों में पदों को राज्य सरकार द्वारा नहीं भरे जाने पर मौखिक कहा कि सरकार कछुए की गति से क्यों चल रही है? लोकायुक्त, मानवाधिकार आयोग, सूचना आयुक्त सहित कई संवैधानिक संस्थाओं के पद तीन से पांच साल से खाली पड़े हैं लेकिन इन्हें अब तक इसे नहीं भरा जा सका है।

कोर्ट ने कहा कि शपथ पत्र के माध्यम से राज्य सरकार द्वारा लोकायुक्त सहित कई संवैधानिक पदों पर नियुक्ति को लेकर एक टाइम फ्रेम दिया जा रहा है, जो एक माह से ज्यादा का समय है। सरकार को टाइम फ्रेम की अवधि कम करनी होगी। हाई कोर्ट में सोमवार को राज्य में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति से संबंधित राजकुमार की अवमानना याचिका समेत राज्य के 12 संवैधानिक संस्थाओं में अध्यक्ष एवं सदस्यों के पद रिक्त रहने को लेकर दायर जनहित याचिका की सुनवाई हुई।

कोर्ट ने मामले की सुनवाई मंगलवार निर्धारित करते हुए सरकार को फ्रेश शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया। कोर्ट में सरकार को लोकायुक्त सहित अन्य संवैधानिक संस्थाओं में नियुक्ति के लिए निर्धारित किए गए टाइम फ्रेम को कम करने का निर्देश दिया है। इससे पहले वरीय अधिवक्ता वीपी सिंह ने कोर्ट को बताया कि सरकार की ओर से सूचना आयुक्त, लोकायुक्त सहित कई संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के लिए पहले नेता प्रतिपक्ष नहीं रहने की आपत्ति को लगाया गया था।

इसमें करीब डेढ़ साल का समय बीत गया। सरकार अब भी इन पदों पर नियुक्ति के लिए एक माह से अधिक का टाइम फ्रेम निर्धारित कर रही है। सरकार को जल्द से जल्द इन पदों पर नियुक्त प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए थी। इस पर सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया की सूचना आयुक्त की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला गया है। इस पर कोर्ट ने मौखिक कहा कि सिर्फ सूचना आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने से काम नहीं चलेगा। लोकायुक्त, राज्य मानवाधिकार आयोग एवं अन्य संवैधानिक संस्थाओं में रिक्त पदों को जल्द भरने पर भी फोकस करें।

राजकुमार की अवमानना याचिका में याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया था कि वर्ष 2020 में हाई कोर्ट ने सूचना आयुक्तों कि नियुक्ति से संबंधित एक याचिका को राज्य सरकार का पक्ष सुनने के बाद निष्पादित कर दिया था। उस समय सरकार की ओर से कोर्ट में अंडरटेकिंग देते हुए कहा गया था कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति जल्द कर ली जाएगी।