TAASIR :–NEERAJ – 19, Nov
हिमाचल हाई कोर्ट से कांग्रेस की सुक्खू सरकार को बड़ा झटका लगा है। बिजली कंपनी का बकाया वक्त रहते नहीं दे पाने के कारण दिल्ली स्थिति हिमाचल भवन की नीलामी की जाएगी। दरअसल, लाहौल स्पीति की चेनाब नदी पर 400 मेगावाट का एक हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट लगना था। लेकिन किन्हीं कारणों से यह प्रोजेक्ट धरातल पर नहीं उतर पाया। इसके बाद सेली हाइड्रो पावर इलेक्ट्रिक कंपनी ने अपफ्रंट मनी के तौर पर सरकार के पास जमा 64 करोड़ रुपए वापस देने की मांग की।सरकार ने पैसे देने से इनकार किया तो मामला आर्बिट्रेशन कोर्ट गया। जहां पर फैसला कंपनी के पक्ष में आया तो आर्बिट्रेशन कोर्ट ने हिमाचल सरकार को 64 करोड रुपए 7% ब्याज के साथ वापस लौटने को कहा। इसके खिलाफ हिमाचल सरकार हाई कोर्ट गई लेकिन कोर्ट ने फैसला कंपनी के पक्ष में ही दिया। हालांकि हाईकोर्ट ने सरकार को पैसा लौटाने के लिए पर्याप्त वक्त दिया। लेकिन हिमाचल सरकार के बिजली विभाग के अफसरों की ढिलाई की वजह से पैसा वक्त पर नहीं जमा किया गया। इसके बाद हाई कोर्ट ने कंपनी के पक्ष में फैसला देते हुए हिमाचल भवन की नीलामी का आदेश दे दिया। राजधानी दिल्ली स्थित इस प्राइम प्रॉपर्टी की नीलामी से कंपनी अपने बकाया 150 करोड़ रुपये वसूलेगी। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि इस मामले में बिजली विभाग के प्रधान सचिव एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाकर जांच करेंगे कि आखिर किन अधिकारियों की गलती की वजह से हिमाचल सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि ब्याज की रकम दोषी अधिकारियों से वसूली जाएगी। इसे लेकर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा, मैंने उच्च न्यायालय का आदेश नहीं पढ़ा है लेकिन अग्रिम प्रीमियम एक नीति पर आधारित है जिसके तहत 2006 में जब ऊर्जा नीति बनाई गई थी, मैं मुख्य वास्तुकार था। हमने प्रति मेगावाट एक आरक्षित मूल्य रखा था जिस पर कंपनियों ने बोली लगाई थी। अग्रिम प्रीमियम के मामले में मध्यस्थता द्वारा निर्णय लिया गया था… हमारी सरकार मध्यस्थता आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में गई थी। सरकार को मध्यस्थता में 64 करोड़ रुपये जमा करने थे। मैंने इस संबंध में जानकारी ली है और हम इस प्रकार के आदेश के बारे में अध्ययन करेंगे।