केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान को बिहार का राज्यपाल बनाया गया है.

TAASIR :–NEERAJ – 25, Dec

केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान को बिहार का राज्यपाल बनाया गया है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा मंगलवार शाम की गई राज्यपालों की नियुक्ति के तहत पूर्व केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला को मणिपुर, जनरल वीके सिंह को मिजोरम, हरि बाबू को ओडिशा का राज्यपाल बनाया गया है. बिहार के राज्यपाल रहे राजेंद्र आर्लेकर को केरल का गवर्नर बन दिया है. इस तरह से आरिफ मोहम्मद खान को राज्यपाल के रूप में एक और कार्यकाल मिल गया है. सवाल यही उठता है कि आरिफ मोहम्मद खान को बीजेपी क्यों इतना पसंद करती है यूपी के बुलंदशहर के गांव मोहम्मदपुर बरनाला में जन्मे आरिफ मोहम्मद खान ने छात्र जीवन से ही सियासत में कदम रख दिया था. बुलंदशहर से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ने गए तो सियासी पारी का आगाज किया. एएमयू में पहले महासचिव बने और फिर अध्यक्ष के रूप में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्र संघ का नेतृत्व किया. इसके बाद देश में आपातकाल के खिलाफ आरिफ मोहम्मद खान ने इंदिरा गांधी के खिलाफ मुखर होकर आवाज उठानी शुरू कर दी और 19 महीने जेल में रहना पड़ा. जेल से बाहर निकलते ही 26 साल की उम्र में आरिफ मोहम्मद खान जनता पार्टी से स्याना विधानसभा सीट से विधायक चुने गए. उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता मुमताज खान को चुनाव में हराया था. इसी चुनाव के साथ ही उनका पोलिटिकल कैरियर पूरी तरीके से शुरु हो चुका था, क्योंकि आरिफ मोहम्मद खान आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ मुखर आवाज बनकर उभरे थे. हालांकि, सियासत ने कांग्रेस के करीब लाकर खड़ा कर दिया. आपातकाल के बाद संजय गांधी ने युवा नेताओं के साथ मिलकर जनता पार्टी के खिलाफ माहौल बनाने की कवायद की. इंदिरा गांधी को मुस्लिम चेहरे की तलाश थी. विधायक बनने के बाद दो साल बाद आरिफ मोहम्मद खान ने कांग्रेस का दामन थाम लिया. 1980 में आरिफ मोहम्मद खान कांग्रेस के टिकट पर कानपुर लोकसभा सीट से सांसद बनकर संसद पहुंचे और इंदिरा गांधी सरकार में मंत्री बने. इसके बाद सन 84 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी के नेतृत्व में एक बार फिर से आरिफ मोहम्मद खान सांसद बने और कैबिनेट मंत्री बने, लेकिन राजीव गांधी के साथ उनके सियासी ख्यालात नहीं मिल सके.शाहबानो मामले को लेकर आरिफ मोहम्मद खान ने राजीव गांधी के मंत्रिमंडल और कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था. इंदौर की शाहबानो को उनके पति ने तीन तलाक दे दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के तलाक के मामले में उनके पति को हर्जाना देने का आदेश दिया था, लेकिन पीएम रहे राजीव गांधी ने संसद के जरिए इस फैसले को पलट दिया था. इस मामले को लेकर आरिफ मोहम्मद खान ने राजीव गांधी सरकार से इस्तीफा दे दिया था और कांग्रेस विरोधी चेहरे के तौर पर उभरे. इतना ही नहीं प्रोग्रेसिव मुस्लिम लीडर के तौर पर अपनी सियासी पहचान आरिफ मोहम्मद खान ने बनाई. कांग्रेस छोड़ने के बाद आरिफ मोहम्मद खान जनता दल से दो बार सांसद रहे और बसपा के एक बार लोकसभा सांसद बने. 2004 में बीजेपी का दामन थाम कर कैसरगंज सीट के चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके. इसके बाद से राजनीतिक दूरी बना ली थी. वह सामाजिक/सांस्कृतिक संगठनों के कार्यक्रमों में शामिल होते रहे. शाहबानों मामले को लेकर आरिफ मोहम्मद खान ने मौलाना अली मियां के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. मुस्लिम कट्टरपंथ के खिलाफ मुखर आलोचक के तौर पर आरिफ मोहम्मद खान की पहचान बनी, जिसके चलते हिंदू और दक्षिणपंथी संगठनों में उन्हें अपने कार्यक्रम में बुलाना शुरू कर दिया. आरिफ मोहम्मद खान एक दार्शनिक राजनीतिज्ञ के रूप में सामने आए. सक्रिय राजनीति से दूर होने के बाद आरिफ मोहम्मद खान मेडिकल कॉलेज समेत बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स को इंडियन पॉलिटिक्स, समाजशास्त्र और भारतीय दर्शन के ऊपर अक्सर लेक्चर देते हुए नजर आते थे. अल्पसंख्यक और मुस्लिम राजनीति के धुर विरोधी चेहरे बनकर उभरे. मुस्लिम उलेमा और मौलाना से उलट आरिफ मोहम्मद की अपनी इस्लामिक सोच है. इसके लिए देवबंद से लेकर नदवे जैसे मदरसे में पढ़ाई जा रही इस्लामिक शिक्षा पर भी सवाल खड़े करते रहे हैं. इतना ही नहीं राष्ट्रवादी मुस्लिम के रूप में भी अपनी मजबूत पहचान बनाई है. खान सिर्फ हिंदू त्योहारों में शामिल ही नहीं होते बल्कि मंदिरों में जाते है और पूजा-पाठ भी करते नजर आते हैं. इस्लामिक कट्टरपंथी ही नहीं मुस्लिमों के प्रति कांग्रेस की सोच पर प्रहार करने वाले बयान के चलते आरिफ मोहम्मद खान को बीजेपी सर्किल में पसंद किया जाने लगा. मुस्लिमों में आरिफ मोहम्मद खान के चाहने वाले भी हैं और नापसंद करने वालों की लंबी कतार है. उन्हें मुस्लिमों का एक वर्ग प्रगतिशील और सुधारक मानकर पसंद करता है तो दूसरा धड़ा बीजेपी और आरएसएस की लाइन पर चलने वाला मानकर नापसंद भी करता है. इसके चलते ही आरिफ मोहम्मद खान बीजेपी में पसंद किए जाने वाले मुस्लिम चेहरा बन गए. तीन तलाक पर आरिफ मोहम्मद खान का बयान बीजेपी के लिए हमेशा ढाल बना रहा. आरिफ मोहम्मद खान के बयानों के जरिए बीजेपी ने कई मौकों पर यह जताने की कोशिश की कि तीन तलाक का कानून इस्लाम और मुस्लिमों के खिलाफ नहीं बल्कि मुस्लिम महिलाओं के हित में लाया गया है. आरिफ खान को बीजेपी में पसंद करने के पीछे उनका कांग्रेस पर तमाम संदर्भों और मजहबी कट्टरता पर तर्कों और दृष्टान्तों से हमला करने की स्टाइल है. इसीलिए कई मौके पर पीएम मोदी और अमित शाह संसद से लेकर रैलियों तक में आरिफ मोहम्मद के बहाने कांग्रेस पर हमला करते नजर आते हैं.